अब हम साईकिलपर बैठकर काफिलेमें जाने लगे थे. काफिलेंमें साइकिल चलाना मतलब मजाक नही. एक का भी संतूलन बिगड गया तो बाकिका साईकिलके साथ गिरना लगभग निश्चीत. वैसे संतूलन बिगडनेकीही उम्र थी वह. हम 8-9 लोग गृपमें कॉलेज जाते थे. एक दिन गृपमें जाते वक्त ढीश... ट्यू... कीसीके ट्यूब फटनेका आवाज आया. हम सबलोग खिलखिलाकर हसने लगे. शाम्या मोटा होनेसे हसते वक्त पहले सिर्फ उसका शरीर हिलता था और हसनेका आवाज बादमें आताथा. जैसे बिजली चमकने के बाद होता है - पहले बिजली दिखती है और आवाज बादमें आता है. जबकभी हंसनेकी बात होती तब हंसनेकी पहली फेरी होनेके बाद हम शाम्याको हंसते हूए देखकर हंसनेकी दूसरी फेरी शुरु करते थे. शाम्याका चेहरा हसते हसते एकदमसे मायूस हो गया जब उसे पता चला की उसकेही साईकिलका ट्यूब फटा है.
एकबार हमारे साईकिल गृपका जोक सेशन हूवा. सेशनकी खांसीयत यह थीकी सब जोक्स साईकिलकेही थे. सबकी अपेक्षाके अनुरुप पहला जोक शाम्याने बताया - जोक बताने वक्त उसके पात्र भी हमारेंमेंसेही रहते थे ताकी जोकका औरभी मजा आए -
शाम्या जोक बताने लगा -
एक दिन सुऱ्या और संज्या साईकिलपर डबलसिट जा रहे थे. उनको एक ट्रफिक पुलिसने रोका. वह पुलिस उनको फाईन लगाने के उद्देशसे उनकी कसकर जांच पडताल करने लगा. लेकिन कुछ नही मिला. तब संज्याने गर्वसे कहा - आप हमे कभी पकड नही सकोगे... क्योंकी हमारा भगवान हमेशा हमारे साथ रहता है... ऐसा क्या फिर मै आप लोगोंको टीबलसीट साईकिल चलानेके जुर्ममें फाईन लगाता हूं ...
फिर संज्या जोक बताने लगा -
एकबार शाम्या मोट्या पैदल कॉलेजमे जा रहा था. पहले तो वह पैदल कॉलेजमें जा रहा था यही सबसे बडा जोक ... और दुसरा जोक, उसे एक साईकिलवालेने टक्कर मारी. टक्कर मारकर उपरसे वह साईकिलवाला बोलता क्या है - ' तुम किस्मतवाले हो ... तुम बडे किस्मतवाले हो'. शाम्याने पुछा 'कैसे?'
'' क्योंकी जनरली मै बस चलाता हूं..''
अब सुऱ्या जोक बताने लगा -
एक बार शाम्या नई कोरी साईकिल लेकर आया. तब संज्याने उसे पुछा - 'अरे नई साईकिल ली क्या?'
शाम्या बोला, ' अरे नही ... कल क्या हूवा ... मै घर जा रहा था तब सामनेसे एक सुंदर लडकी इस साईकिलपर आई. उसने साईकिल रोडपर फेंक दी. मेरे पास आकर उसने उसके बदनपरके सारे कपडे निकालकर रोडपर फेंक दीए और मेरे करीब आकर मुझे बोली, '' ले तुझे जो चाहिए वह ले''
संज्या बोला, '' तुमने बहुत अच्छा किया साईकिल ली ... क्योंकी कपडे तो तेरे कुछ काम नही आए होते''
कॉलेज खतम हूवा. जिंदगीकी रफ्तार बढ गई और साईकिल छुट गई. शायद जिंदगीके रफ्तारके सामने साईकिलकी रफ्तार कम पडती होगी. साईकिलके 'टायर' की जगह काम ना करते हूए आनेवाले 'टायर्डनेस'ने ली. साईकिलके 'सिट' के बजाय लडकोंके ऍडमिशनकी 'सीट' या फिर मंत्रीयोंके 'सीट' पर जादा चर्चा होने लगी. इतनाही नही 'स्पोक' यह शब्द 'स्पीक' का भूतकाल जादा लगने लगा. जिंदगी वही थी लेकिन जिंदगीके मायने बदल गए थे.
लेकिन अब बहुत सालोंके बाद फिरसे मै साईकिल चलाने लगा.
हर दीन .. हर दिन शामको बिस मिनट... डॉक्टरने कहां है इसलिए ! ...
समाप्त
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आपने हमे भी अपने स्कुल के दिन याद दिला दिये :( कोई लोटा दे वो प्यारे प्यारे दिन.
ReplyDeleteमस्त लगे आपके ये हवा वाली बातें। आगे भी इसी रह से लीखते रहिए।।।।
ReplyDeletei felt like being transported to school/college days while reading. nice work.
ReplyDeleteHi sunil very nice story from childhood, I like that I have already pended my 18years on cycle. From your story it clearly appear that how much fun you have done.
ReplyDeleteSpecially the last one migration from old age to new age and forgetting the cycle. Nice felling . thanks man I am expecting more story from you. Specially from your childhood.
Dear sir
ReplyDeleteu all doing a great job.
it is funny come emotional story ,great attempt.
ReplyDeleteHi,your cycle story transported me back to India in 1987 when i was there studying.cycle was my mode of transport too.real nice story.Thnaks from FIJI ISLANDS
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